रोज कहती है तेरे सीने पे सर रख के रात भर जगुंगी,
उसकी दिल्लगी तो देखो यारों ...
सर-ए-शाम ही आज फिर सुला गई पिछली रात की तरह !
मेरे ही दिल में वो बना गई आशियाँ अपनी यारों...,
और मैं शहर भर में ढूंढता रहा उसे पागल के तरह !!
धीरे से सरकती है रात उसकी आँचल की तरह,
चेहरा उसका नज़र आता है झील मैं कमल की तरह !
उसकी दिल्लगी तो देखो यारों ...
सर-ए-शाम ही आज फिर सुला गई पिछली रात की तरह !
मेरे ही दिल में वो बना गई आशियाँ अपनी यारों...,
और मैं शहर भर में ढूंढता रहा उसे पागल के तरह !!
धीरे से सरकती है रात उसकी आँचल की तरह,
चेहरा उसका नज़र आता है झील मैं कमल की तरह !
बरसों बाद आज जब उसको देखा तो दिल को कुछ यूँ लगा,
जैसे प्यासी जमीं पे कोई बरस गया बादल की तरह !!
मुझे तो मौत की खौफ का भी खोफ नहीं है अब ......,
मुझे तो बस अब अपने ही यारों से खौफ आता है!!