ये तो धड़कन का कसूर है,
मौत आये मुझे बरसो गुजरें,
बस यूँही सांस आती जाती है!
सैकड़ों खंजर हैं मेरी छाती में,
खूँ का कतरा नहीं है कोई मगर !
काश समझ पाते ये लोग यहाँ,
कलम स्याही कहाँ से लाती है ?
बैठे हैं यहाँ आज मेरी महफ़िल में,
इस शहर के समझदार कई ,
हर शेर पे बहुत खूब कहते हैं,
जाने कैसे इन्हें हर बात समझ आती है !
मेरा साया मुझको हर शाम एक वही पुराना सवाल दे जाता है,
सारा दिन मुट्ठी कस कर रखी थी बंद मैंने ये रेत कैसे सरक जाती है?
------------------------------------------MISHRA--------------------------------------------
जो जिन्दा होने का एहद कराती है !
बस यूँही सांस आती जाती है!
सैकड़ों खंजर हैं मेरी छाती में,
खूँ का कतरा नहीं है कोई मगर !
काश समझ पाते ये लोग यहाँ,
कलम स्याही कहाँ से लाती है ?
बैठे हैं यहाँ आज मेरी महफ़िल में,
इस शहर के समझदार कई ,
हर शेर पे बहुत खूब कहते हैं,
जाने कैसे इन्हें हर बात समझ आती है !
मेरा साया मुझको हर शाम एक वही पुराना सवाल दे जाता है,
सारा दिन मुट्ठी कस कर रखी थी बंद मैंने ये रेत कैसे सरक जाती है?
------------------------------------------MISHRA--------------------------------------------
No comments:
Post a Comment