Sunday, January 27, 2013

तुम मेरी हो, प्यार से नहीं जिद से सही! ..............................!!

तुम मेरी हो, प्यार से नहीं जिद से सही!
नहीं दरवाज़ा जो खुल सकता तो खिड़की सही!
मैंने तो बस यूँ ही पूछा था की ....
मेरी होने में, तेरी बिगरता क्या है ?
वो बोली तेरी होने में, तुमको मिलता क्या है !!
क्या बताऊँ ये तो मैंने सोचा ही नहीं था,,,,,
मेरी होने में उसका, मुझे मिलता क्या है।
मैंने कुछ यूँ समझाने की कोशिस की यारों ..

देख मेरी मोहब्बत एक निशाब जैसा,
देख तेरा चेहरा एक किताब जैसा,
आज भी महकता है मेरे जानो जिगर में,
तेरा चेहरा एक खिलते गुलाब जैसा।
यकीन भी हैं तू मेरे दिल का,
गुमान भी हैं शराब जैसा।।।।
तू वो बासूरी हैं जो रख दूँ होंठ अपनी मैं,
तो दिल को मेरे छू ले रुबाब जैसा ......!!
मैं तो तेरा ऐतबार करता हूँ, दिलो जां से,
इसलिए आज भी इंतज़ार करता हूँ !!
इसलिए आज भी कहता हूँ दुनियां से
तुम मेरी हो, प्यार से नहीं जिद से सही!!


No comments: