Sunday, October 16, 2011

वफ़ा होती तो क्या होता ...........................................!!

कितने ही कठिन लम्हे आये मेरी हस्ती में,
अफ़सोस वफ़ा मेरी मुझ को ही न रास आई !!

हम को उनसे वफ़ा की है उम्मीद,
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है !!

कल तक तो आशना थे मगर आज ग़ैर हो,
दो दिन में यह मिज़ाज है आगे तो खैर हो !!

जब इतनी बेवफाई पर दिल उसको प्यार करता है,
तो या-रब वह सितमगर बा-वफा होता तो क्या होता !!
तेरी इसी बेवफाई पर फ़िदा होती है जान अपनी,
खुदा जाने अगर तुझमें वफ़ा होती तो क्या होता !!

सच्चे तो कोई ज़ात खुदा के सिवा नहीं,
बुत थे मज़े की चीज़ मगर बा-वफ़ा नहीं !!
..................
Mishra..........................!!

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